रास्तों पर चलने की भले आदत रही ज़िंदगी भर
आज भी ये नम मिट्टी उतनी ही साथ लगती है
चेहरों पे कितने भी चेहरे लगा लूं बदल कर
ये हमेशा मेरे खोए हुए खुद को खोज लाती है
उस सांझ की धूप में कोई गर्माहट नहीं पर
ना जाने क्यों सुकून के बिलकुल पास लगती है.....
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